इसलिए मैं आपको कथित गौरक्षक कहता हूँ।



याद रखिये नफ़रत सिर्फ नफ़रत पैदा होती है, गौरक्षा दल के लोगों गौमांस निर्यात के आरोप में कुछ युवकों को पकड़ा तो उन्हें पोलिस के हवाले करना था। उन्हें तो जेल भेजा गया मगर उन्हें भेजने से पहले गोबर और मूत्र पिलाया गया। आखिर इतनी नफ़रत आती कहाँ से है, ईशनिंदा क़ानून का भारतीय संस्करण (गौरक्षा अधिनियम) भारत का सबसे विवादित कानून बनता जा रहा है। गौमांस निर्यात के आरोप में उन्हें तो गिरफ्तार किया गया। पर क्या गौरक्षा के नाम पर उन नौजवानों के साथ जो किया गया गया, उसकी सज़ा उन कथित गौरक्षकों को मिलेगी। मैंने कथित शब्द इसलिए उपयोग,किया कि ये गौरक्षा दल के लोग गाय और बैल की तस्करी में सबसे बड़े बिचौलिए रहते हैं। बड़े व्यापारियों से पैसा लेकर उनका जानवर एक्सपोर्ट करने की खबरे आमजन के मुंह से सुनाई देती हैं। पर जब कोई गरीब इंसान पर इनकी नज़र पड़ती है,तो ये कथित गौरक्षक अपनी हैवानियत पर उतर आते हैं।
इनके मुंह से महिलाओं के लिए कभी सम्मानजनक शब्द नहीं सुनेंगे आप। हमेशा माँ-बहन की गलियां, फिर भी सबसे बड़े धर्मरक्षक, असल में ये भावनाओं का खेल है। दिखावे के सिवा कुछ नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस के पोर्टल  से लिया गया स्क्रीनशॉट 

जब कचरे में वही गाय प्लास्टिक खा रही होती है, सड़ा गला खाना खा रही होती है । तब भी आप किसी गौरक्षा समिति के व्यक्ति को नहीं पाएंगे। जब गायें आवारा घूम रही होती हैं, अधिकता के कारण किसान उसकी देखभाल नहीं कर पाता तो वो कसाई को बेच देता है, तब ये गौरक्षक कहाँ गायब हो जाते हैं। यकीन मानिये गौरक्षा के नाम पर एक बहुत बड़ा फर्जी वसूली का गोरखधंदा चल रहा है। जिनका काम ही यही होता है, कि ये गौरक्षा दल या समिति वाले जानवर पास कराते हैं। जो पैसा नहीं देता उसके जानवर पकड़वा देते हैं।
यदि वास्तव में गौरक्षा करना है, तो किसानों को मनाओ की वो व्यापारी या कसाई को जानवर न बेचें। पर आप उसे मना नहीं करोगे। ये तो वैसी ही बात हो गयी आप अफ़ीम पैदा करने वाले पर रोकथाम की कोई कोशिश नहीं करेंगे, पर अफीम के सेवन करने वाले आपके निशाने पर आ जाते हैं।
माना कि आपकी श्रद्धा का ख्याल रखते हुए ईशनिंदा कानून का भारतीय संस्करण गौरक्षा अधिनियम विभिन्न राज्यों में बनाया गया है। तो आप कानून को अपना काम क्यों नहीं करने देते। पोलिस को कहिये की वो इन कामों में मुस्तैदी दिखाये। याद रखिये आपकी भावनाओं की क़द्र तभी होगी, जब आप ऐसी हैवानियत करना बंद कर देंगे। अजीब बात है,कि आप अपनी आस्था दूसरों पर थोपना चाहते हो। जबकि आपको चाहिए की आप अपनी आस्था के सम्मान की अपील करें। अपील इंसानियत से होती है, हैवानियत से तो सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व अलगाव पैदा होता है। आप भारत के इतिहास कप उठाकर देखिये, जितने भी दंगे हुए हैं उनमे गाय ने एक अहम भूमिका अदा की है। गाय आपके लिए आस्था का विषय है, पर ईसाई, सिख और मुस्लिमों और बौद्धों के लिए नहीं। वो आपकी भावनाओं का सम्मान कर सकते हैं। आपके सामने ये सब न खाकर। पर आप ज़ोर ज़बरदस्ती पर उतारू हैं। आप गुंडागर्दी की जगह लोगों से विनम्रतापूर्वक निवेदन तो करिये। इस देश की जनता बहुत भोली है, आप आग्रह तो करिये। आपकी आस्था का सम्मान किया जायेगा। क्या आपने कभी ऐसी सख्ती शराब के संबंध में दिखाई, जो न जाने कितनी ही बुराईयों की जड़ है। शराब को हर धर्म व मज़हब में बुरा माना जाता है। अगर शराब की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये, तो न जाने क्राइम रेट कितना कम हो जायेगा।
आपको समाज में फैलने वाली बुराइयाँ रोकने का कभी ख्याल नहीं आता। कभी आमजन में फैलने वाली आम बुराईयों को रोकने के लिए भी कोई दल बनाईये। प्रशासन का वैसा ही सहयोग कीजिये जैसा आप गौरक्षा के लिए करते हैं। जुआँ और सट्टा की रोकथाम करवाईये, पर आप करवाएंगे नहीं। क्योंकि जुएं और सट्टे में बर्बाद होते लोग आपको दिखाई नहीं देते। समाज को आप नशे की लत शराब और ड्रग्स वगैरह के अवैध कारोबार से निजात दिलाने की कोशिश करते क्यों नज़र नहीं आते। आपकी कोशिशें शराब जैसी "महाबीमारी " को बन्द कराने के लिए क्यों नहीं होती। आखिर आप लोगों को कभी कोई शराब का अड्डा गिराते हुए क्यों नहीं देखा गया।
हो सकता है, मेरे जैन मित्रों को मेरी कुछ बात बुरी लगेगी। पर जो कहने जा रहा हूँ, वह एक बड़ा सत्य है। जैन मित्र अहिंसा परमो धर्माह को अपना मुख्य सिद्धांत मानते हैं। पर क्या कभी उन्होंने सामाजिक स्तर पर अलकबीर एक्सपोर्ट्स कंपनी के जैन साझेदार साथी के विरुद्ध कोई अभियान चलाया। जबकि देखा जाता है, कि धर्म रक्षा के नाम पर बने सारे बड़े हिन्दू संगठनों के पदों पर जैन भाई लोग पदाधिकारी हैं। प्रवीण तोगड़िया हो या न्यूज़ चैनल्स में बहस करने वाले बंसल साहब। सभी लोग विश्व हिन्दू परिषद् और दूसरे संगठनों में पदाधिकारी पाये जाते हैं। जब भी गौमांस और मांसाहार पर बहस होती है, ये भाई लोग टीव्ही पर बहस करते पाये जाते हैं। पर क्या इन बड़े बड़े जैन पदाधिकारी भाईयों ने कभी भी अलकबीर जैसे हिंदुस्तान के बड़े बीफ एक्सपोर्टर्स के खिलाफ समाजिक स्तर पर कोई अभियान चलाया। आखिर क्यों ये उनके खिलाफ मुखर नहीं होते, उनके विरुद्ध आह्वान नहीं करते।
एक और बात ज़हन में आ रही है, सोच रहा हूँ वो भी शेयर करते चलूँ। हिंदुस्तान की 70 प्रतिशत आबादी मांसाहारी है। मुस्लिम सिर्फ 18 या 19 प्रतिशत हैं टोटल आबादी का। बचे 52 प्रतिशत कौन लोग हैं, जो मांसाहार का सेवन करते हैं। क्या आपको पता है, की मांस,मछली और अंडे के कारोबार में सबसे बड़ी गिरावट कब आती है। सिर्फ नौ दिन के लिए यह गिरावट आती है, नवरात्री के समय। आपकी कोशिश अपने घर को सुधारने की होना चाहिये। किसी भी सुधार कार्य की शुरुआत अपने घर से की जाती है। कभी आप बंगाल जाईये, तमिलनाडु जाईये। जहाँ की 90 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी मांसाहार करती है। क्या आप अपना ये गुस्सा उनके ऊपर उतारेंगे, आपको तो आम लोग दिखते हैं, क्या आप अपना गुस्सा किरेन रिजुजु जी के बयान के बाद नहीं दिखाएंगे, जो उन्होंने कहा था "कि मैं माँस खाऊंगा, देखते हैं मुझे कौन रोकता है"।
क्या आप अपना गुस्सा "मोदी सरकार" के ऊपर उतारेंगे, जिस सरकार ने बीफ निर्यात को बढ़ावा दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं, बूचड़खानों में लगने वाली मशीनों को सब्सिडी भी दी है। पर आप ऐसा नहीं करेंगे, आप गोवा के मुख्यमंत्री के उस बयान का विरोध भी नहीं करेंगे जिसमे उन्होंने गोवा में बीफ बैन नहीं किये जाने का ऐलान किया था।
सुनिये आप दोगले, आपका नज़रिया दोगला है। आप सिर्फ गरीबों के साथ मारपीट कर सकते हैं। इन नेताओं के विरुद्ध आवाज़ उठाना तो दूर आप सोच भी नहीं सकते। इसलिए मैं आपको कथित गौरक्षक कहता हूँ।

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