डर जानते हैं न आप. जी हाँ मै डर की बात कर रहा हूँ. अरे वही डर जो
अलग-अलग रास्तों से आपके दिमाग में बिठा दिया जाता है. पर जानते हैं, ये जो
डर है न, इसके अंदर बहुत उर्वरा शक्ति होती है. आप बोलेंगे किस चीज़
उर्वरा, मेरा जवाब होगा, ये डर और ज़्यादा डर को पैदा करता है.
लगता है, आप नहीं समझे ! अरे भाई मै वही बात कर रहा हूँ, जो अक्सर लोग आपसे करते हैं. दरअसल आपके अंदर एक डर बिठाया जाता है, फलां जो कौम है बहुत खूंखार है. ज़ालिम है, इनके घरों में लोग पैदा ही आतंकवादी होते हैं. और भी तरह -तरह की बातें की जाती हैं. अब आप जो हैं, दिन रात उस समुदाय के किसी न किसी व्यक्ति के साथ उठते और बैठते हैं. अरे बल्कि साथ खाते हैं, घूमते हैं, एक दूसरों की परेशानियां शेयर करते हैं. पर अचानक से आप मोबाईल में व्हाट्सअप के किसी ग्रुप या किसी फेसबुक पेज पर जाते हैं. और सब कुछ ऐसा बदल जाता है, जैसे कुछ था ही नहीं.
फिर एक साथ चाय पीने वाला आपका वो दोस्त, आपके घर में खाना खाने वाला आपका वो यार, सिर्फ़ इसलिये आपको दुश्मन नज़र आने लगता है. क्योंकि फलां व्हाट्सअप ग्रुप के फलां मैसेज में फलां राजा ने (जोकि आपके दोस्त के समुदाय से था) इतिहास में ज़ुल्म किये थे. भले ही इसके कोई प्रमाण हों या न हों. आप उससे इसलिए भी नफ़रत करने लगते हैं, क्योंकि वो किसी मुद्दे में आपसे एक राय नहीं हो पाता है.
शाम को आप एक व्हाट्सअप ग्रुप में कुछ मैसेज देखते हैं. जो आपको गर्वित करता है. इसी बीच आपकी नज़र टीवी के किसी न्यूज़ चैनल जैसे दिखने वाली बहस पर पड़ती है, जहां एक समुदाय विशेष से जुड़े किसी मामले पर बहस चल रही होती है. टीवी एंकर चिल्लाता है, ये हैं देश के दुश्मन, यहाँ नमक खाते हैं और पड़ौसी देश का गुणगान गाते हैं. कभी-कभी ऐसा भी लगता है, जैसे बहस चलाने वाले एंकर महोदय किसी दल विशेष के प्रवक्ता है. बहस में एक व्यक्ति को बहस के नाम पार बुलाया जाता है, फिर एंकर समेत पूरा पैनल उस एक व्यक्ति पर अपनी पूरी भड़ास निकालता है. आपको सुकून की अनुभूति होती है.
चूंकि उसमें किसी समुदाय को पॉइंट किया जाता है, इसलिए आपके दिल में एक डर बैठता है. ये लोग बहुत ही बेकार लोग हैं, अगर सत्ता में आ गए तो हमारा जीना हराम आकर देंगे. हमारा आस्तित्व नहीं बचेगा, आप लव मैरिजेज़ को भी किसी समुदाय विशेष का सामूहिक सड़यंत्र समझने लगते हैं. आप सोचने लगते हैं, ये हमारी बेटियों को मुहब्बत के जाल में फंसाते हैं.
अब आप उस समुदाय के लोगों से अति नफ़रत करने लगते हैं, आपको लगता है. कि ये लोग देश के लिए ख़तरा हैं. आप किसी होटल में समोसा खाने जाते हैं, एक पेपर के टुकड़े में आपको और आपके दोस्तों को वो समोसा दिया जाता है. वो कागज़ का टुकड़ा असल में अख्बा का टुकडा था, उसके एक कोने में आपकी नज़र पड़ती है. उस खबर की हैडिंग होती है - पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़े. आप मुंह बनाते हुए बोलते हैं - ये तो रोज़ की बात है.
आप फिर उस पेपर को पलटते हैं, पीछे उसमे लिखा होता है - किसानों की लागत नहीं निकल रही. आप मुंह बनाकर इसे टाल देते हैं. इसी बीच दूसरे दोस्त का समोसा खाकर पूरा हो जाता है. वो पेपर फेकता है, आपकी निगाहें उस पर तिक जाती हैं- उसमे लिखा होता है- कि रेप की घटनाओं में कोई कमी नहीं. इसी बीच आपकी नज़र उस खबर में भी पड़ती है, कि आजकल देश में लोग भूख से भी मर रहे हैं.
आप अपने साथियों से कहते हैं, कि भाई ये तो बहुत बुरा हो रहा है, देश किस और जा रहा है. देखो महंगाई, पेट्रोल डीज़ल के रेट, ट्रेन का किराया, महंगी दवाई और सब तो सब - अपन किसान हैं यार , ये क्या सब्सिडी बंद हो गई. पैसे का भुगतान नहीं. बिजली का बिल इतना महंगा. क्या होगा आपना ?
आपके ये सवाल सुनकर सामने वाला दोस्त कहता है, भाई क्या इतना नहीं सह सकते. क्या चाहते हो, कि फिर वही लोग सत्ता में आ जाएँ. भूल गए क्या ये लोग कितने खतरनाक हैं. इतनी बड़ी समस्या ये समुदाय देश के लिए बना हुआ है, और तुम होकी महंगाई और बेरोज़गारी को समस्या बता रहो हो. ये मत भूलना कि ये पूरी कि पूरी कौम बहुत ज़ालिम है, इन्होने जीना हराम कर रखा है.
आप उस शख्स का हाथ पकड़ कर बोलते हैं, सहीह कह रहे हो मित्र अब मैं फलां पार्टी को वोट दूंगा, फलां मुक्त देश बनाऊँगा. ताकि फलां समुदाय के लोगों को सबक़ सिखा सकूँ.
~ मुहम्मद ज़करिया खान
लगता है, आप नहीं समझे ! अरे भाई मै वही बात कर रहा हूँ, जो अक्सर लोग आपसे करते हैं. दरअसल आपके अंदर एक डर बिठाया जाता है, फलां जो कौम है बहुत खूंखार है. ज़ालिम है, इनके घरों में लोग पैदा ही आतंकवादी होते हैं. और भी तरह -तरह की बातें की जाती हैं. अब आप जो हैं, दिन रात उस समुदाय के किसी न किसी व्यक्ति के साथ उठते और बैठते हैं. अरे बल्कि साथ खाते हैं, घूमते हैं, एक दूसरों की परेशानियां शेयर करते हैं. पर अचानक से आप मोबाईल में व्हाट्सअप के किसी ग्रुप या किसी फेसबुक पेज पर जाते हैं. और सब कुछ ऐसा बदल जाता है, जैसे कुछ था ही नहीं.
फिर एक साथ चाय पीने वाला आपका वो दोस्त, आपके घर में खाना खाने वाला आपका वो यार, सिर्फ़ इसलिये आपको दुश्मन नज़र आने लगता है. क्योंकि फलां व्हाट्सअप ग्रुप के फलां मैसेज में फलां राजा ने (जोकि आपके दोस्त के समुदाय से था) इतिहास में ज़ुल्म किये थे. भले ही इसके कोई प्रमाण हों या न हों. आप उससे इसलिए भी नफ़रत करने लगते हैं, क्योंकि वो किसी मुद्दे में आपसे एक राय नहीं हो पाता है.
शाम को आप एक व्हाट्सअप ग्रुप में कुछ मैसेज देखते हैं. जो आपको गर्वित करता है. इसी बीच आपकी नज़र टीवी के किसी न्यूज़ चैनल जैसे दिखने वाली बहस पर पड़ती है, जहां एक समुदाय विशेष से जुड़े किसी मामले पर बहस चल रही होती है. टीवी एंकर चिल्लाता है, ये हैं देश के दुश्मन, यहाँ नमक खाते हैं और पड़ौसी देश का गुणगान गाते हैं. कभी-कभी ऐसा भी लगता है, जैसे बहस चलाने वाले एंकर महोदय किसी दल विशेष के प्रवक्ता है. बहस में एक व्यक्ति को बहस के नाम पार बुलाया जाता है, फिर एंकर समेत पूरा पैनल उस एक व्यक्ति पर अपनी पूरी भड़ास निकालता है. आपको सुकून की अनुभूति होती है.
चूंकि उसमें किसी समुदाय को पॉइंट किया जाता है, इसलिए आपके दिल में एक डर बैठता है. ये लोग बहुत ही बेकार लोग हैं, अगर सत्ता में आ गए तो हमारा जीना हराम आकर देंगे. हमारा आस्तित्व नहीं बचेगा, आप लव मैरिजेज़ को भी किसी समुदाय विशेष का सामूहिक सड़यंत्र समझने लगते हैं. आप सोचने लगते हैं, ये हमारी बेटियों को मुहब्बत के जाल में फंसाते हैं.
अब आप उस समुदाय के लोगों से अति नफ़रत करने लगते हैं, आपको लगता है. कि ये लोग देश के लिए ख़तरा हैं. आप किसी होटल में समोसा खाने जाते हैं, एक पेपर के टुकड़े में आपको और आपके दोस्तों को वो समोसा दिया जाता है. वो कागज़ का टुकड़ा असल में अख्बा का टुकडा था, उसके एक कोने में आपकी नज़र पड़ती है. उस खबर की हैडिंग होती है - पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़े. आप मुंह बनाते हुए बोलते हैं - ये तो रोज़ की बात है.
आप फिर उस पेपर को पलटते हैं, पीछे उसमे लिखा होता है - किसानों की लागत नहीं निकल रही. आप मुंह बनाकर इसे टाल देते हैं. इसी बीच दूसरे दोस्त का समोसा खाकर पूरा हो जाता है. वो पेपर फेकता है, आपकी निगाहें उस पर तिक जाती हैं- उसमे लिखा होता है- कि रेप की घटनाओं में कोई कमी नहीं. इसी बीच आपकी नज़र उस खबर में भी पड़ती है, कि आजकल देश में लोग भूख से भी मर रहे हैं.
आप अपने साथियों से कहते हैं, कि भाई ये तो बहुत बुरा हो रहा है, देश किस और जा रहा है. देखो महंगाई, पेट्रोल डीज़ल के रेट, ट्रेन का किराया, महंगी दवाई और सब तो सब - अपन किसान हैं यार , ये क्या सब्सिडी बंद हो गई. पैसे का भुगतान नहीं. बिजली का बिल इतना महंगा. क्या होगा आपना ?
आपके ये सवाल सुनकर सामने वाला दोस्त कहता है, भाई क्या इतना नहीं सह सकते. क्या चाहते हो, कि फिर वही लोग सत्ता में आ जाएँ. भूल गए क्या ये लोग कितने खतरनाक हैं. इतनी बड़ी समस्या ये समुदाय देश के लिए बना हुआ है, और तुम होकी महंगाई और बेरोज़गारी को समस्या बता रहो हो. ये मत भूलना कि ये पूरी कि पूरी कौम बहुत ज़ालिम है, इन्होने जीना हराम कर रखा है.
आप उस शख्स का हाथ पकड़ कर बोलते हैं, सहीह कह रहे हो मित्र अब मैं फलां पार्टी को वोट दूंगा, फलां मुक्त देश बनाऊँगा. ताकि फलां समुदाय के लोगों को सबक़ सिखा सकूँ.
~ मुहम्मद ज़करिया खान
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