यदि आपके पास देशभक्ति का पैमाना हो तो कृपया हमें भी बतायें

JNU अपने अंदर एक छोटे भारत को समेटे हुए है, जहाँ से निकले हुए न जाने कितने ही IAS और IPS देश की सेवा कर रहे हैं। असल में JNU को बदनाम करने की जो साज़िश की गयी उसकी वजह भी जान लीजिये। एक जमात विशेष की विचारधारा के विरुद्ध JNU हमेशा मुखर रहा है, जहाँ हर किसी को अपनी बात और विचारधारा रखने का अधिकार है। आखिर ये राष्ट्रवाद का जिन्न और देशद्रोह का भूत आया कैसे। कुछ जमातें हैं,जिनकी नज़र में उनके जो हिमायती हैं, उनके जो तरफदार हैं, वही सच्चे देशभक्त हैं। पर जो उनका मुख़ालिफ़ है,विरोधी है। जो उनकी विचारधारा से सहमत नहीं, पल भर नहीं लगता उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है। आखिर राष्ट्रवाद की परिभाषा क्या है? आप किसी भी व्यक्ति के राष्ट्रवाद को कैसे मापेंगे ? कोई पैमाना तो होगा, क्या पैमाना बनाया है आपने ?
              जिससे आप किसी भी व्यक्ति के देशप्रेम और देशद्रोह को मापकर उसका इलाज कर सकें। वैसे वास्तविक देशद्रोह है क्या? संविधान की नज़र में देशद्रोही होने की क्या शर्ते हैं, जिनके उल्लंघन से व्यक्ति देशद्रोही हो जाता है। देशद्रोह और देशप्रेम की जितनी भी परिभाषाएँ हैं, उनमे से कौनसी परिभाषा देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के ज़्यादा करीब है। क्या एक लोकतान्त्रिक देश में देशप्रेम देश के नागरिकों पर वैचारिक प्रतिबंन्ध लगाता है ?
क्या हमारा लोकतंत्र अधिकारों के हनन के विरुद्ध आवाज़ उठाने को देशद्रोह मानता है। क्या गांधी और सुभाष के देश में भुखमरी से आज़ादी का नारा लगाना देशद्रोह है, क्या हम सामन्तवादी व्यवस्था के अंदर हैं, जो उसके विरुद्ध आवाज़ उठाना देशद्रोह हो गया।
             आईये अब नज़र डालते हैं JNU की घटना पर 👉
JNU में एक छात्र संगठन ने अफ़ज़ल गुरु की फाँसी पर एक संगोष्ठी रखी थी। इस प्रोग्राम में कश्मीरी स्टूडेंट की भी एक बड़ी तादाद थी। वजह सिर्फ एक की आप और हम सबकी नज़र में अफ़ज़ल गुरु एक आतंकवादी है, पर कुछ लोग हैं जिनका मानना है की पर्याप्त सुबूत न होते हुए भी उसे फांसी दी गयी। वो अफ़ज़ल गुरु के समर्थकों की दलील है, अब यदि इसी पॉइंट को ध्यान में रखकर उसपर चर्चा का टॉपिक रखा गया तो ये भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था के हिसाब से बिलकुल भी गलत नहीं है। हाँ पाकिस्तान के समर्थन में हुई नारेबाज़ी और भारत के टुकड़ों वाला नारा निंदनीय है। जिसकी जांच होना चाहिए। आजतक चैनल ने अपने प्रोग्राम में वीडियो को फ़र्ज़ी साबित किया है। जिसके अनुसार वीडियो का ऑडियो कहीं का और वीडियो दूसरा है। एक के बाद एक कई वीडियो सामने आये, जिसमे एक वीडियो में abvp के छात्र भी नारे लगाते दिखाई पड़ रहे हैं। सारा मामला आरोप प्रत्यारोप पर टिका है। मामले की जांच से कोई भी असहमत नहीं है, पर जिस तरह से कन्हैया की गिरफ़्तारी हुई। उमर ख़ालिद और कन्हैया का मीडिया ट्रायल हुआ। कोर्ट परिसर में हमला हुआ और मीडिया में बैठे कुछ कथित देशभक्तों ने तो उमर ख़ालिद को आतंकी तक घोषित कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं आतंकी संगठनों के साथ नाम जोड़ने तक की कोशिश हुई। इसलिए ये सवाल खड़ा हुआ कि देशभक्ति और देशद्रोह को मापने का कौनसा पैमाना है आपके पास। क्योंकि राष्ट्रवाद की परिभाषा विचारधारा के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। एक लोकतान्त्रिक देश में गुंडागर्दी क़तई राष्ट्रवाद नहीं हो सकता, क्योंकि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपना मत रखने का संवैधानिक अधिकार होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे देश की न्याय व्यवस्था है, जहाँ हम आतंकवादी को भी वकील रखने का अधिकार देते हैं। यदि उसके पास वकील न हो तो उसे सरकारी वकील मुहैय्या कराते हैं, ताकि वो अपना पक्ष रख सके।
ये है हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था, यही है लोकतंत्र। लोकतंत्र का नाम गुंडागर्दी या देशभक्ति और देशद्रोह का प्रमाणपत्र देना नहीं है।
उम्मीद है आप मेरी बात को समझ गए होंगे।
जय हिन्द ✊✊✊जय भारत की एकता और अखण्डता

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