लेख का विषय बड़ा अजीब लगा होगा, पर वास्तविकता यही है, वर्तमान राजनीति यही है। एक समुदाय से दूसरे को डराना, तथ्यों को ऐसा पेश करना की एक समुदाय के दिल में दूसरे समुदाय का डर बैठ जाए। ऐसा डर जो आगे चलकर आस्तित्व की लड़ाई में तब्दील हो जाए। दूसरा समुदाय प्रतिद्वंदी नज़र आने लगे, फिर डर दिखाने वाले दल और संगठन विशेष के लोग उस डर से निजात दिलाने इज्ज़त व अस्मिता के रखवाले बनकर अपने-अपने समुदायों के मसीहा बनने की कोशिश करते हैं।
यही तो है दक्षिणपंथी और चरमपंथी गुटों की कार्यप्रणाली, बातें ऐसी करेंगे कि धर्म खतरे में है और ये खुद धर्म के सबसे बड़े रक्षक। कहीं हिन्दू धर्म खतरे में होता है तो कहीं इस्लाम, फिर क्या हर चीज़ हिन्दू-मुस्लिम के नज़रिए से देखी जाने लगती हैं। हर एक, दूसरे से आगे निकल जाने की चाह रखता है। लोगों के दिमाग में धर्म ही नहीं अपने समाज, धन्धों और महिलाओं के नाम पर इमोशनल अत्याचार भी किया जाता है। उकसावे का सबसे बड़ा हथियार लोगों के इमोशंस को बनाया जाता है। लोग बिन सोचे समझे इमोशंस पर ऐसे बह पड़ते हैं, जैसे नाली का पानी किसी गंदे नाले या गटर पर जा मिलता है। उस नाली के पानी का अस्तित्व नाले की तुलना में बहतर था, जब उसका मिलन नाले या गटर के पानी से होता है। विसंगतियां, बुराईयाँ और गंदगियाँ समावेशी रूप में उसके अस्तित्व और पहचान को बदल देती हैं। अब वोह किसी काम का नहीं होता। पहले साफ़ सुथरा और उपयोगी था,फिर नाली में जाकर उपोगिता में भारी गिरावट आई और अंत में गटर में मिलकर उसके हिस्से हिकारत और नफरत आती है।
एक नहीं सभी सांप्रदायिक तनावों और हिंसाओं की शुरुआत उठाकर देखिये, एक डर मिलेगा। डर की पृष्ठभूमी को खंगालिये, कहीं न कहीं धर्म रक्षा के नाम पर फैलाये जाने वाले झूठ के सरबराह संगठन और दल मिलेंगे। देश का बंटवारा भी असुरक्षा की भावना ने ही तो कराया था। बंटवारे के बाद से आज तक देश में हुए सारे दंगों की लिस्ट उठाईये, कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद असुरक्षित नज़र आये और फिर दंगे व हिंसा हुए। हद तो तब हो जाती है, जब दो अलग-अलग समुदाय के युवकों के आपसी विवाद भी साम्प्रदायिक रंग ले लेते हैं। इस डर को खत्म कीजिए, क्योंकि यही डर असहिष्णुता को जन्म देता है। जिसकी वजह से फिर आप अपने धर्म की रक्षा के नाम पर दूसरों की धार्मिक आज़ादी और उनके मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। फिर आप कभी भीड़ का हिस्सा बनकर किसी को मार देते हैं या फिर लाखों की भीड़ के साथ थानों को आग लगा देते हैं। आप शौक़ से अपने अपने धर्म का पालन करिए, हिन्दू और मुस्लिम बने रहिये। पर इस देश पर एक मेहरबानी करिए अपने डर और धर्म रक्षा के नाम पर किसी की पर्सनल लाईफ़ पर इंटरफियर मत करिए। यदि आप अपनी सहमति और असहमति को दिखाने का हक रखते हैं, ये हक दूसरों के पास भी है। लोगों से उनका हक मत छीनिए। याद रखिये धर्म और मज़हब को खतरे में बताकर आम लोगों की पर्सनल लाईफ को खतरे में मत डालिये!
यही तो है दक्षिणपंथी और चरमपंथी गुटों की कार्यप्रणाली, बातें ऐसी करेंगे कि धर्म खतरे में है और ये खुद धर्म के सबसे बड़े रक्षक। कहीं हिन्दू धर्म खतरे में होता है तो कहीं इस्लाम, फिर क्या हर चीज़ हिन्दू-मुस्लिम के नज़रिए से देखी जाने लगती हैं। हर एक, दूसरे से आगे निकल जाने की चाह रखता है। लोगों के दिमाग में धर्म ही नहीं अपने समाज, धन्धों और महिलाओं के नाम पर इमोशनल अत्याचार भी किया जाता है। उकसावे का सबसे बड़ा हथियार लोगों के इमोशंस को बनाया जाता है। लोग बिन सोचे समझे इमोशंस पर ऐसे बह पड़ते हैं, जैसे नाली का पानी किसी गंदे नाले या गटर पर जा मिलता है। उस नाली के पानी का अस्तित्व नाले की तुलना में बहतर था, जब उसका मिलन नाले या गटर के पानी से होता है। विसंगतियां, बुराईयाँ और गंदगियाँ समावेशी रूप में उसके अस्तित्व और पहचान को बदल देती हैं। अब वोह किसी काम का नहीं होता। पहले साफ़ सुथरा और उपयोगी था,फिर नाली में जाकर उपोगिता में भारी गिरावट आई और अंत में गटर में मिलकर उसके हिस्से हिकारत और नफरत आती है।
एक नहीं सभी सांप्रदायिक तनावों और हिंसाओं की शुरुआत उठाकर देखिये, एक डर मिलेगा। डर की पृष्ठभूमी को खंगालिये, कहीं न कहीं धर्म रक्षा के नाम पर फैलाये जाने वाले झूठ के सरबराह संगठन और दल मिलेंगे। देश का बंटवारा भी असुरक्षा की भावना ने ही तो कराया था। बंटवारे के बाद से आज तक देश में हुए सारे दंगों की लिस्ट उठाईये, कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद असुरक्षित नज़र आये और फिर दंगे व हिंसा हुए। हद तो तब हो जाती है, जब दो अलग-अलग समुदाय के युवकों के आपसी विवाद भी साम्प्रदायिक रंग ले लेते हैं। इस डर को खत्म कीजिए, क्योंकि यही डर असहिष्णुता को जन्म देता है। जिसकी वजह से फिर आप अपने धर्म की रक्षा के नाम पर दूसरों की धार्मिक आज़ादी और उनके मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। फिर आप कभी भीड़ का हिस्सा बनकर किसी को मार देते हैं या फिर लाखों की भीड़ के साथ थानों को आग लगा देते हैं। आप शौक़ से अपने अपने धर्म का पालन करिए, हिन्दू और मुस्लिम बने रहिये। पर इस देश पर एक मेहरबानी करिए अपने डर और धर्म रक्षा के नाम पर किसी की पर्सनल लाईफ़ पर इंटरफियर मत करिए। यदि आप अपनी सहमति और असहमति को दिखाने का हक रखते हैं, ये हक दूसरों के पास भी है। लोगों से उनका हक मत छीनिए। याद रखिये धर्म और मज़हब को खतरे में बताकर आम लोगों की पर्सनल लाईफ को खतरे में मत डालिये!
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