शायद यह एक परिपाटी बन चुकी है, जब जब भारत और पकिस्तान के मध्य बातचीत का सिलसिला शुरू होता है, उसी बीच कोई न कोई बड़ी आतंकी घटना को सरहद पार से अंजाम दिया जाता है। पर ये कब तक चलेगा ?
यूपीए के शासनकाल मे पाकिस्तान से बातचीत का सिलसिला सख्ती से बन्द किया गया था। क्योंकि यूपीए सरकार मुम्बई हमलों के गुनाहगारों के लिये सख्त से सख्त सज़ा चाहती थी। तत्कालीन विपक्ष (जो कि वर्तमान मे सत्तासीन है) ने सीमा पर सैनिकों की हत्या पर एक बदले दस सर लाने वाली बात भी कही थी। तात्कालीन नेता प्रतिपक्ष और वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा उस वक़्त कहे इन शब्दों का वीडियो यूटयूब मे उपलब्ध है। रजत शर्मा के शो आपकी अदालत मे गुजरात के तात्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, कि सरकार पाकिस्तान को लव लेटर लिखना बंद करे। उसको उसी की भाषा मे जवाब देना चाहिये।
देश उस वक़्त आश्चर्य मे पड़ गया था, जब मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह मे नवाज़ शरीफ को आमंत्रित किया था। उसके बाद ऊफा मे मुलाक़ात फिर सुषमा स्वराज का पाकिस्तान दौरा। अचानक मोदी का पाकिस्तान जाना, ये सब भाजपाई भाषणों के विपरीत होता दिखा।
आखिर अचानक ऐसा क्या बदल गया था, की यूपीए के शासन मे एक के बदले दस सर लाने को मांग करने वाली सुषमा स्वराज पाकिस्तान यात्रा कर आयीं, वो भी जब उनके शासन मे ज़्यादा सीजफायर का उल्लंघन हो रहा है और ज़्यादा सैनिक मारे गए।
अटल सरकार के समय भी अटल बिहारी वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा और उसके बाद हुए कारगिल युद्ध को देश भूला नही है। इतना ही नही 1999 मे कंधार विमान अपहरण और उसके एवज़ मे आतंकियों को छोड़ने वाली घटना भी देश के लिए एक शर्मसार करने वाला लम्हा रहा है।
सवाल यही उठता है, कि जून 2014 के बाद से देश की सीमाओं पर हमले तेज़ी से बढ़े हैं, तो फिर अचानक मनमोहन सिंह के समय से पाकिस्तान से बंद बातचीत को फिरसे क्यों शुरू किया गया ? आखिर देश की सीमाओं मे हो रहे हमलों के संबंध मे सरकार ने कौन से कड़े क़दम उठाये। अचानक लाहौर की यात्रा करके और नवाज़ शरीफ कर मेहमान बनकर सबको चौंकाने वाले मोदी क्या Pathankot हमले का सख्त जवाब दे पायेंगे? ऐसे कई सवाल देश की जनता के मन मे हैं।
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