तो फिर गरीब और पिछड़े अल्पसंख्यकों को कम कीमत मे कैसे शिक्षा मिलेगी मैडम ?

आखिर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा  क्यों नही ? स्मृति ईरानी अपनी गंदी मानसिकता का परिचय दे रही हैं। हाँ दलित, आदिवासियों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनका हक़ मिलना चाहिये। पर किसी का हक़ छीनकर नही, AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का हक़ आज़ादी के पूर्व से है। वैसे भी AMU और जामिया जैसे शिक्षण संस्थान ही तो हैं, जो गरीब अल्पसंख्यक समुदाय को उच्च शिक्षा उपलब्ध करवाते हैं। क्या हमारा संविधान हमें अपने समाज के उत्थान के लिये शिक्षण संस्थान वगैरह चलाने की अनुमति नही देता। एक तरफ जब देश के सबसे ज़्यादा पिछड़े और गरीब अल्पसंख्यक समुदाय के उत्थान की बात की जाती है, तो उसका विरोध यह कहकर किया जाता है कि धर्म के नाम पर आरक्षण नही। जबकि मुस्लिम समुदाय मे जाति व्यवस्था और ऊँच नीच जैसी कोई व्यवस्था ही नही है। तो फिर आप कैसे शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार के क्षेत्र मे अल्पसंख्यक समुदाय का उत्थान करेंगे। यदि AMU और जामिया को उनका अल्पसंख्यक संस्थान दर्जा वापिस कर दिया जाता है, तो इन संस्थान की 50 प्रतिशत सीट्स अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम,सिख,ईसाई,पारसी एवं जैन) छात्रों के लिए रिज़र्व हो जायेंगी।
यह सर्वव्याप्त है, कि सरकार द्वारा घोषित सभी अल्पसंख्यक समुदायों मे मुस्लिम अल्पसंख्यक शैक्षिक और आर्थिक रूप से सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। देश मे बसने वाला हर समुदाय इस देश के अंग की तरह है। देश के एक अंग को शिक्षा की कमी, बेरोज़गारी और स्वास्थ सेवाओं की कमी की बीमारी ने जकड़ा हुआ है। उस बीमारी से निजात दिलाने के लिए ज़रूरी है, शिक्षा, स्वास्थ और रोज़गार के स्त्रोत पैदा कोए जायें। ताकि शिक्षा, स्वास्थ और बेरोज़गारी को काम किया जाये।
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