आतंकियों के विरुद्ध आवाज़

मौत का खेल आम है, हर तरफ मौत और दहशतगर्दी का खेल जारी है। दुनिया में हर तरफ इन दहशतगर्दों ने इंसानियत को ख़तरे में डाला हुआ है। अगर अब पूरी दुनिया का मुसलमान इनके ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाया तो ये लोग इस्लाम के नाम पर न जाने और क्या क्या गैरइस्लामिक कामों को इस्लाम का नाम देकर इस्लाम को बदनाम कर देंगे। आईसिस हो या तालिबान या फिर कोई और संगठन इन सबके द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियाँ कहीं से भी इस्लामिक नहीं हो सकती। जिहाद के नाम पर आतंक को नहीं परोसा जा सकता।
ये अलग बात है, कि पश्चिमी देशों ने अपने फ़ायदे देखते हुए अलग-अलग आतंकी संगठनों को खड़ा किया था। जैसे सोवियत संघ के खिलाफ अमरीका ने ही तालिबान को बनाया था। इन सभी आतंकी संगठनों के विरुद्ध सऊदी अरब के ग्रैंड मुफ़्ती अब्दुलज़ीज़ आले शैख़ ने शुरू से ही मोर्चा खोला हुआ है। उन्होंने पहले तालिबान फिर लश्कर और अब आईसिस को गैरइस्लामिक संगठन और एक फितना क़रार दिया है। उनके मुताबिक़ ये सारे के सारे लोग आतंकवादी संगठन हैं और ये लोग क़ुरआन की आयतों की गलत व्याख्या कर युवाओं को गुमराह करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते।
इन आतंकियों को बनाने में पश्चिमी देशों का बड़ा हाथ है। आखिर आईसिस जैसे आतंकी संगठनों को शुरूआत में ही क्यों नहीं कुचल दिया गया। आईसिस के आतंकी मेड इन इज़राईल हथियारों का उपयोग कैसे कर रहे हैं? ये एक चिंता का विषय है,क्योंकि आतंकवादियों तक मेड इन इज़राईल हथियार पहुंचना बेहद खतरनाक और चिंता का विषय है।आईसिस पर चुप बैठे, यूरोपीय देश फ्रांस पर आतंकी हमले के बाद अपनी नींद से जागे।इंसानी खून की कीमत का एहसास तब हुआ जब यूरोपीय देशों को खुद इस समस्या से दो चार होना पड़ा। इससे पूर्व सिर्फ अमेरिका और सऊदी अरब के संयुक्त अभियान जारी थे। पर उतना प्रभावी नहीं हो पा रहे थे। आईसिस  और बशर अल असद का ज़ुल्म सीरिया की जनता सह ही रही थी। सीरिया और ईराक़ में आईसिस पर हमले होना चाहिये पर सीरिया की जनता का भी ख्याल रखा जाना चाहिए, ताकि आतंकियों की कार्यवाही हो और आम लोग सुरक्षित रहें।

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