हमारा समाज और सोच निर्वस्त्र हो गई है



आखिर ये किस दौर में चले आये हैं हम, जहाँ उत्तरप्रदेश में एक दलित दंपत्ति को पुलिस वालों और भीड़ के द्वारा नंगा कर दिया जाता है और उस कार्य की भर्त्सना करना तो दूर की बात है, इस पूरी घटना को देखने वाले लोग उस निर्वस्त्र युवती का वीडियो बनाकर वायरल कर देते हैं| शर्म व हया आज के समाज में तो बची नही, पर नैतिकता की मृत्यु हो चुकी है!
                    भीडतंत्र के कारनामे भारत की पहचान पर धब्बा बनते जा रहे हैं| पिछले एक-डेढ़ साल में देश को तोड़ने और भीड़तंत्र की इन करतूतों ने देश के अन्दर जंगलराज की स्थिति बना दी है! कितना शर्मिंदा करोगे इस मुल्क को, अगर उस दलित दंपत्ति की ख़बर सुनकर तुम्हारी आँखों से आंसू नहीं निकले तो सोच लेना कि तुम इंसान नहीं, आधुनिक हैवान हो! खबर सब ने टीव्ही पर देख ली होगी, या सोशल मीडिया में देख लिया होगा| किस दौर में जी रहे हो, सरेआम पुलिस और कुछ दबंगई दिखाते लोग उस दलित दंपत्ति को पूर्ण बराहना (निर्वस्त्र) कर देते हैं और तुम मज़ा लेते हुए वीडियो बनाकर सोशल मीदियामें अपलोड कर देते हो! तुम भी उस गुनाहगार पुलिस के ही बराबर गुनाहगार हो, जो भीड़ का हिस्सा बनकर वीडियो बनाने में मशगूल रहे! तुमने मुल्क को शर्मसार किया है! उस दलित परिवार ने तो हिम्मत की पुलिस थाणे तक जाने की, न जाने कितने ही लोग डर के मारे ज़ुल्म व सितम सहते रहते हैं! अब ज़ुल्म सहना बंद करो! अपनी आवाज़ को बुलंद करो !
                    कुछ दिन पहले की बात है, उत्तरप्रदेश के गाज़ियाबाद जिले में दादरी के पास बिसाहडा गाँव में एयरफोर्स में कार्यरत व्यक्ति के पिता को भीड़ ने सिर्फ एक अफ़वाह पर मार दिया! इसके पश्चात बयानबाजी का एक सिलसिला चला, ये भीडतंत्र अपनी इन हरकतों से पूरी दुनिया में देश को बदनाम कर रहा है! इसके पहले पुणे में मोहसिन नामक युवक की हत्या कर डी गई थी| महाराष्ट्र में गोविन्द पंसारे की ह्त्या और मंगलोर में कलबुर्गी हत्याकांड इसी निम्नतम सोच का एक हिस्सा है| भारतीय समाज किस ओर जा रहा है, हमारी सोच और समाज निर्वस्त्र हो रहा है| कई बार ऐसा महसूस होता है, जैसे देश में जंगल का कानून लागू हो रहा है| जंगलराज की यह कहानी बड़ी ही विकत स्थिति देश के लिए पैदा कर रही है! कभी खाप पंचायतों के फैंसले, और कभी हरयाणा व उत्तर प्रदेश में दलित परिवारों के साथ होने वाले भेदभाव व अन्याय की ख़बरें गाहे बगाहे न्यूज़ पेपर्स व चैनल्स में सुनाई पड़ती हैं| आखिर हम अपने आप को विकासशील कैसे कह सकते हैं, जबकि हमारी सोच तो कई हज़ार वर्ष पूर्व के समयकाल को जी रही है| एक अजीब कुंठा से ग्रसित हमारे मस्तिष्क से निकलने वाले विकार हमारे और हमारे देश के वातावरण को दूषित क्लारने का कार्य कर रहे हैं | वक़्त है संभल जाओ, नहीं तो दुनिया हम पर थूकेगी| देश की प्रतिष्ठा में लगने वाले दाग व धब्बों को मिटाने का प्रयास करिए| अपनी सोच को वस्त्र पह्नाईये क्योंकि "हमारा समाज और सोच निर्वस्त्र हो गई है"|

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