अफ़वाह, गौमांस और भीड़

गाज़ियाबाद के गाँव  दादरी में बिलखते अखलाक़ के परिजन

यह देश के लिए शर्म से झुक जाने का समय है, कि भीड़तन्त्र देश पर हावी हो रहा है। जी हाँ हम एक सभ्य समाज के नागरिक होने का दावा तो करते हैं,पर हमारे सभ्य समाज की हवा निकालने के लिए एक अफ़वाह काफ़ी होती है। हम उत्तेजित हो जाते हैं और भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। हमारे देश में बहुसंख्यक समाज हो या अल्पसंख्यक, सभी के लिए कुछ ऐसे पॉइंट चुन लिए गए हैं, जिनका उपयोग करते ही भीड़ को उकसाना आसान हो जाता है। एक को भड़काने के लिए सुअंर का मांस, तो दुसरे के लिए गाय का मांस काफ़ी है। फिर भड़कते भी ऐसे हैं, की किसी समझाने वाले की बात उनके दिमाग के नीचे नहीं उतरती, जी  हाँ!  सिर्फ एक अफ़वाह इस शांत देश  को  अशांत करने के लिए काफ़ी होती है। पर हम बेवकूफ  हैं, जो सालों से आजमाए जा रहे इस तरीके को अब तक नहीं समझ पाए हैं!
                             उत्तरप्रदेश में मंदिर से ऐलान होता है,की गाँव में रहने वाला अखलाक़ और उसका परिवार गौमांस खाता है, फ़िर क्या पूरा गाँव दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भीड़तंत्र की एक ऐसी मिसाल पेश करते हैं, जो की इस देश की आज़ाद और लोकतांत्रिक छवि को कलंकित कर देती है| महज़ एक अफ़वाह पर 100- 150 लोग अखलाक़ की बुरी तरह पिटाई कर उसे मार देते हैं| महनत मजदूरी करके कमाने वाले अखलाक़ की जान की कीमत एक अफ़वाह से कम हो गई| उसके बेटे को नाजुक हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है| वैसे तो उसके घर में कोई गौमांस नहीं मिला, पर मान लिया जाए की उसके घर में गौमांस था तो क्या उसे मार दिया जाए| क्या ये भारतीय संविधान के अनुसार सहीह है| भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहाँ पर सभी प्रकार के लोग रहते हैं! इस तरह की हरकतें देश की एकता और अखंडता के लिए नुक्सान दायक हैं|
आप किन-किन लोगों को मारेंगे? देश के सारे मुस्लिम,इसाई,आदिवासी,दलित और अन्य 62% आबादी गौमांस भक्षण करती है| आपकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए ये आबादी आपके सामने गौमांस भक्षण नहीं करती, क्या ये भावनाओं का ख्याल नहीं है? यदि आप चाहते हैं, कि सम्मान हो तो किसान के द्वारा गौवंश को कसाई को बेचने पर रोक लगाईये!
गौवंश को कसाई को बेचने में पाबन्दी लगाईये, गौमांस की बिक्री में खुद ब खुद कमी आ जाएगी| आखिर आप किसी के खाने पर रोक नहीं लगा सकते, पर आप इसकी बिक्री में कमी ज़रूर कर सकते हैं| पर इस तरह लोगों की हत्या करके आप क़तई इस पर रोक नहीं लगा पायेंगे! ऐसे भीड़तंत्र और जिन संगठनों की शह पर ये सब हो रहा है, उनपर भी लगाम की ज़रूरत है| इस देश की अमन-शान्ति को बरक़रार रखने के लिए, सांप्रदायिक तत्वों और बेलगाम संगठनों पर रोक लगाना आवश्यक हो गया है!
आईसिस और तालिबान से तुलना :
इस घटना के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की लोकतांत्रिक छवि को गहरा धक्का पहुंचा है,
देश विदेश में इस घटना की भारी निंदा की जा रही है| कुछ लोग इस कृत्य की तुलना तालिबानी और आईसिस शासन में होने वाली घटनाओं से भी कर रहे हैं! यह देश की छवि पर एक बड़ा धब्बा है|





Comments