तू मेरी बोली नहीं बोलता,इसलिए दुश्मन है तू मेरा

"तू वही बोल जो मैं बोलना और सुनना चाहता हूँ,तुझे कोई हक़ नहीं है की तू अपने हिसाब से बोले। याद रख मै  वही सुनुँगा जो मुझे पसंद है!"

                 कुछ एस यही माहौल है न आजकल? किसी को हिंदी पसंद नहीं तो किसी को उर्दू और इंग्लिश पसंद नहीं! कोई भोजपुरी और मैथिलि सुनकर मुंह बनाता है, तो कोई गुजराती भाषा सुनकर गुस्से में आ जाता है। कोई सिंधी भाषा सुनकर अचम्भे में पड़ जाता है, किसी को मराठी सुनकर मुंह बनाते और पंजाबी को सुनकर चुटकुले बनाते देखा जा सकता है। धोके से अगर कोई दक्षिण भारतीय बोलियों में से कुछ बोल दे तो कुछ लोग उसे  बकरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! आखिर नफरत की भी कोई हद्द होती है! कोई उत्तर पूर्वी मिल जाए तो उसे तो इन नज़रों से देखा जाता है, जैसे वह भारतीय है ही नहीं!
महाराष्ट्र सरकार का ऑटो रिक्शा के लाइसेंस के लिए मराठी का अनिवार्य करना हो या मानव संसाधान  मंत्री का उर्दू में ज्ञापन लेने से इंकार करना! दोनों ही केस भाषाई  दूरियों का प्रमाण हैं, आखिर हम किस दौर में चले आये हैं ! कि गूगल  ट्रांसलेट से ट्रांसलेशन करके सोशलमीडिया में चैट करने वाला भारतीय समुदाय अभी तक भाषा को नफरत और दूरियों की वजह बनाया हुआ है! जहाँ मुंबई में अधिकतर ऑटो रिक्शा चालक हिन्दीभाषी राज्यों से हैं,वहीँ उत्तर भारत (लखनऊ और दिल्ली) में पैदा हुई उर्दू एक भारतीय भाषा होते भी एक विशेष समुदाय की पहचान  गई  है। उर्दू जितना ग़ालिब के लिए जाती है,उतना ही उससे प्रेम करने वाले लोग मुंशी प्रेमचंद को उर्दू उपन्यासकार के रूप में जानते हैं।  शायद लोगों को पता नहीं की उर्दू और हिंदी बहनें हैं, जी हाँ दोनों एक दूसरे के बिना अधूरी हैं, दोनों का जन्म उत्तर भारत में हुआ। इन्ही बहनों में संस्कृत के मिलने से मराठी का जन्म हुआ। आखिर एक दूसरी भाषाओं से मिलजुलकर भारत की कई भाषाओं  बोलियों का जन्म हुआ। छत्तीसगढ़ में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी और गोंडी भाषा के मिलन से पूर्वी भारत के अलग अलग हिस्सों में हिंदी में एक अलग रस घुल गया। मध्यप्रदेश जहां हिंदी को समेटे हुए है, तो मालवी और बघेली भी भारत के ह्रदय में समाहित है।  जब हिंदी और उर्दू फ़ारसी से मिलकर संस्कृत के शब्दों को लेकर किसी नई भाषा को जन्म देती हैं,तो वह भाषा कश्मीरी कहलाती है।  पहाड़ में पहाड़ी और बिहार में भोजपुरी और मैथिलि को जन्म देती है। जब अवधी का रंग चढ़ता है तो बुंदेली भी भारतीयता का रंग दिखाती है। यह मान लीजिये बंगाली हो या असमई, गुजराती हो या मराठी या फिर दक्षिण की कोई भाषा और पंजाब और हरयाणा की बोली सब भारतीय भाषाएँ एक दूसरे की पूरक हैं। जैसे दुनिया की सभी भाषाएँ एक दूसरे की पूरक हैं, भाषा किसी को दूर करने और नफरत की वजह नहीं हो सकती। 

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