नए-नए विवादों को जन्म दिया जा रहा है

कहानी बड़ी पुरानी है, एक देश के राजा के विरोधियों ने जनता के बीच में भ्रम फैलाना शुरू किया की, आखिर राजा ने क्या किया है। जिनसे ये कहा जा रहा था, वोह युवा थे वोह इनकी बातों पर आ गए और राजा के विरुद्ध राज्य में हवा बनाने में व्यस्त हो गए।  उनके बड़े बुज़ुर्ग उन्हें समझाते रहे कि तुम जिन लोगों की बात पर आकर ये विद्रोह कर रहे हो, वास्तव में ये लोग झूठे और ठग है। पर उन युवाओं ने अपने बुज़ुर्गों की एक ना सुनी और उन ठग लोगों की बात पर आकर राज्य का तख्ता पलट कर दिया। अब वोह ठग उनके राज्य के शासन को अपने हाथ में ले चुका था, उसका काम तो ठगना था। बस उसने राज्य के कोष से अथाह खर्च शुरू कर दिया, सैर और तफरीह में पैसों को उड़ाने से उसे कोई गुरेज़ न था।  राजकीय कोष कम हो रहा था, उसने ख़बर फैला दी कि राजकीय कोष में कमी पूर्ववर्ती शासकों की वजह से है।  मै तो अपने देश के कल्याण के लिए आया हूँ, कुछ लोग उसके हर तरह के कार्यों की प्रशंसा कर माल पाने कला प्रयास करते रहे। उस दौर राजा की सबसे ज्यादा चापलूसी उसके दरबारी कवि किया करते थे, उन दरबारियों के अन्दर की शर्म ख़त्म हो चुकी थी। पर उसके राज्य की जनता उस ठग को पहचान चुकी थी,उन्हें अपने ठगे जाने का एहसास हो चुका था।  लोग अब लज्जित थे, उस ठग को इस ठगी का सबक सिखाने की पूरी तैयारी कर चुके थे।  ठग ने सोच क्यों न मैं इन लोगों के ध्यान को हटा कर राज्य में मची त्राहि त्राहि से नाराज़ हुई जनता के मन को बदल दूं।  बस उसने अपने चेलों को बुलाया और कहा कि दरबार से बाहर निकलते ही ऐलान कर दो कि दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने वाला है। साथ ही राजा ने उनसे लोहा लेने की ठानी है, कुछ दिन बीत गए ऐसा कुछ नहीं हुआ और जनता का ध्यान फिरसे राजा की नाकामयाबी की ओर जाने लगा। राजा ने फिर अपने सबसे विश्वसनीय व्यक्ति को बुलाया और कहा कि सुनों तुम जनता के बीच में ऐलान कर दो की राज्य में हम अब नाइ मुद्रा की शुरुआत करेंगे और मुद्रा से कई पुराने चिन्ह हटा दिए जायेंगे।  राज्य की जनता फिर एक नए विषय पर वाद और विवाद पर व्यस्त हो गई।  इसी बीच भारी आकाल आया, राज्य के कई नागरिक मारे गये।  कई गरीब लोग सेठ साहूकारों के ज़ुल्म के शिकार हुए पर राजा ने तो प्रजा का ध्यान बाँट रखा था, उसके दरबारी कवि उसकी प्रशंसा में व्यस्त थे।  लोगों को एहसास होने लगा था, की उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।  पर अब बहुत देर हो चुकी थी।  
                                    कुछ ऐसा ही माहौल बनाने की कोशिश हो रही है हमारे देश में, लोगों का ध्यान हटाने के लिए नए-नए विवादों को जन्म दिया जा रहा है।  जब भाजपा नेताओं  पूछा जाएगा कि आपने क्या किया तो ये देश की जनता को कहेंगे की हमने नाम बदले। आखिर नाम बदलना ही तो इनकी प्राथमिकता है, यकीन न आये तो उठाइये इनके कारनामों का चिटठा।  आते ही योजना आयोग का नाम बदलकर "नीति आयोग" रखा और कहा की हमने नइ संस्था बना दी है।  आखिर देश की जनता को क्या बेवकूफ समझ लिया गया है।  कभी किसी योजना का नाम बदल दिया जाता है और कभी किसी सड़क का।  क्या यही है विकास और विकास का गुजरात मॉडल ? क्या नाम बदलने के खेल से गरीबों की जीवनशैली बदल जायेगी और क्या नाम बदलने से बेरोजगारों को रोज़गार मिल जायेगा।  अब ये नाम बदलने के नाम पर देश की जनता का ध्यान बेरोज़गारी और महंगाई से हटाने का प्रयास कर रहे हैं।

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