आखिर देश का मानसिक बंटवारा क्यों ?

हो सकता है आपको ये बात पसंद ना आये पर देश की व्यवस्था में जातिगत और धार्मिक पक्षपात अपनी चरम सीमा में पहुंचना शुरू हो चुका है ! समुदाय विशेष से द्वेष पैदा करने वाले झूठे मैसेजेज़ पिछले 2-3 साल में संघियों के द्वारा व्हाट्सअप और फेसबुक में जिस तरह से फैलाए गए हैं! नौउम्र लड़के और नौजवानों के दिमाग में एक अलग ही तस्वीर मुस्लिम समुदाय के सम्बन्ध में पैदा कर दी गयी है| देश के कई इलाकों से सांप्रदायिक तनाओं की ख़बरें गाहे बगाहें सुनाई देती रहती हैं| आरएसएस, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े लोगों के मन में मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरत का भारी बीज भर दिया गया है| सामुदायिक जीवन में इनके अन्दर एक अजीब सी हिचक देखी जा सकती है |
           वास्तव में ये सब आज से नही 1915  के दौर से चला आ रहा है,जब पूरा देश एक साथ हिन्दू हो या मुस्लिम,सिख हो या ईसाई या फिर किसी अन्य धर्म और जाती समूह से सम्बंधित व्यक्ति , सभी लोग अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई को जीवित किये हुए थे | 1905 में हुए बंगाल विभाजन से अंग्रेजों ने एक गहरी खाई खींचने की कोशिश की, जिसे भारत आजादी के 65 साल बाद  भी भुगत रहा है ! दर असल अंग्रेजों के द्वारा उस वक़्त फूट डालो और राज करो की वाहियात नीति को जस  का तस संघ और भाजपा के लोग अपनाए हुए हैं ! 27 सितम्बर 1925 को संघ की उत्पत्ति के बाद से आज तक देश में ना जाने कितनी बार देश का मानसिक बंटवारा किया गया ! देश की एकता और अखंडता के लिए ये सोच एक नासूर बन चुकी है| कई जगह बार बार अफवाहें और झूठ का सहारा लेकर दंगे और तनाव की स्थिति पैदा की गयी | आपस में मिलने जुलने वाले, उठने बैठने वाले एक दुसरे के प्रति नफरत का भाव पैदा किया जाता है ! आखिर देश को इस मानसिक बंटवारे का शिकार क्यों बनाया जा रहा है ?

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