चलती फिरती प्रयोगशालायें

ओ बबुआ चलती फिरती प्रयोगशाला देखा है का ? मै तुम्हे दुनिया मे दो जगहों के दर्शन कराता हूँ। एक अपने देश मे, और एक विदेश मे । दिमाग को हिला-हिला कर, पानी डाल कर और पूर्णत: ठण्डा करके दोनों प्रयोगशालाओं के बारे मे सुनना,क्योंकि दोनो जगह केमिकल लोचा एक ही है।
अरे घबराओ न छोटू ! ऊ कैमिकल तो सारे नेताओं के पास होता है। अब समझ गये न हम काहे कि बात कर रहे हैं,जब नेता है तो प्रयोगशाला राजनीति कि न होगी !
पहले अपने देश मे नजर दौढा लो,फिर विदेश की बात  करेंगे । परेशान हो गये हो न ।
ओ लल्लन इन्हे बताओ कि हम यू.पी और मध्यपूर्व की धरती की बात कर रहे हैं,ये छोटू समझता ही नाही है ।
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उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों जैसे साम्प्रदायिक घटनाओं की बाढ सी आ गयी । ये बाढ कोई अचानक से नही थी । इसकी शुरूआत बहुत पहले की जा चुकी थी,इसका एक डेमो 1992 मे किया जा चुका था। बिल्कुल वैसे ही प्रयोग 2013 से शुरू हुये थे,पहले मुज़फ्फरनगर कांड कराया गया । पंचायतों का एक दौर चला । दंगे भडक उठे, फिर देखते ही देखते दंगे के आरोपी नेता कुछ लोगों के हीरो बन गये ।
2014 मे लोकसभा चुनाव मे इस तनाव की वजह से पश्चिमी उत्तर-प्रदेश,चम्बल,उत्तरी राज्स्थान,हरयाणा,दिल्ली आदि मे व्यापक ध्रुविकरण हुआ। इस ध्रुविकरण का असर पूरे देश मे फैल गया। बेटियों की सुरक्षा के नाम पर भ्रमित करने वाले और भडकाऊ मेसेजेस की देश मे बाढ से आ गयी थी । सोशल मीडिया (फेसबुक,व्हाट्सएप) आदि से इस तरह के भ्रामक,भडकाऊ चीज़ों को बहुत तेज़ी से फैलाया गया। देश के दो टुकडे हो गये, ये टुकडे मानसिक आधार पर हुये । एक नये नफरत भरे माहौल का निर्माण हुआ ।
              मुज़फ्फरनगर तो एक प्रयोग था,इसके बाद सहारनपुर,मुरादाबाद और मेरठ आदि जैसे बडे किसी प्रयोग की भेंट चढने वाले थे। मेरठ का मामला तो बडा ही अजीब था, वास्तव मे जिस तरह की बात मेरठ के मसले मे की गयी। उससे सारी साज़िशों के चहरे खुल जाते हैं।
"जिन्हे नही पता उन्हे जान लेना चाहिये कि "इस्लाम मे ताक़त के बल पर किसी को मुस्लिम बनाया ही नही जा सकता" क्योंकि दिल से ज़बर्दस्ती की ही नही जा सकती।
 ----क़ुरान मे सुरह बक़र: की आयत नम्बर -256खोल कर पढिये, "दीन मे ज़बरदस्ती नही है"----
क्योंकि इस्लाम क़ुबूल करने का अर्थ होता है,अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना । ईमान और आस्था तो दिल से होती है। इसे ज़बरदस्ती ज़ुबान से तो बुलवाया जा सकता है,पर दिल से कैसे कहलवाओगे । जो शख्स ज़बर्दस्ती करे वोह एक गैरइस्लामिक कार्य कर रहा है,दूसरी बात रेप अगर हुआ है तो "हम इस केस मे भी कहेंगे,कि सारे रेपिस्ट को मौत की सज़ा मिलना चाहिये"। अगर ये सब राजनीति से प्रेरित है तो----
             देखना ये होगा कि कहीं ये घटनायें ,मुज़फ्फरनगर कांड की तरह 2017 के उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले की तैयारी तो नही !!!!
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मध्य-पूर्व की धरती भी अमेरीका और इज़रायल के लिये किसी प्रयोगशाला से कम नही है। हम ईराक़ और अफगानिस्तान के प्रयोग तो देख चुके हैं। अब इराक़ मे आईसिस का उदय और फिर उसके खिलाफ अमरीक़ी कार्यवाही के दौर को देख रहे हैं।
           आईसिस के बारे मे ये फेमस है,कि वोह क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं। अगर ये खबर सहीह है,तो ये जान लेना चाहिये कि बेवजह किसी को मारना इस्लाम मे जायज़ नही। एक बात और जो सुनाई दे रही है,कि बगदादी एक यहूदी एजेंट है जिसे अमरीक़ा ने तैयार किया है। ऐसी बहुत से खबरें मिल रही हैं,पर ये एक सत्य है कि अमेरीक़ा ने मध्य-पूर्व की धरती को हमेशा एक प्रयोगशाला की तरह उपयोग किया है। कभी शिया-सुन्नी लडाई करवाकर,कभी कुछ तो कभी कुछ ! वास्तव में अमेरीक़ा की दादागिरी वाली राजनीति का अखाडा बन चुकी है ये ज़मीन ! मतलब सब कुछ
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