आतंकवाद- एक गाथा

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विश्व की बहुत बडी समस्या आतंकवाद है, आतंकवाद का कहीं न कहीं अतिवाद से एक ऐसा रिश्ता है,कि जहाँ अतिवाद के साथ बेवजह नफरत का मिलन होता है, वहां आतंकवाद जन्म लेता है। कई बार सताय गये और अन्याय की मार झेल रहे लोग भी न्याय न मिलने की बिना पर आतंकवाद की राह पकड लेते हैं। परंतु एक ऐसा भी आतंकवाद है, जिसकी साज़िश पर्दे के पीछे रची जाती है। एक ऐसा आतंकवाद जो कट्टरता और झूठ के मिलन से उत्पन्न नफरत की वजह से फैल रहा है। एक ऐसी नफरत जो इस देश की अखंडता के लिये पिछले 80 सालों से देश को दीमक़ की तरह खा रही है। एक ऐसा अलगाव जिसकी वजह से इस प्यार और मुहब्बत से भरे मुल्क मे नफरत की ऐसी दरार बनी कि दो अलग-अलग मुल्क वजूद मे आ गये। मुल्क तो दो बने मगर उसके असरात इस क़दर बढ गये, कि आज़ादी के साथ हुये बटवारे के साथ पैदा हुये राजनीतिक मुद्दे 60 साल बाद भी अपना असर दिखा रहे हैं।
इस कट्टरता से परे इस मुल्क मे मिलजुल कर रहने वाले भारतियों का समूह तब भी था आज भी है। एक ऐसा समूह जो हमेशा से एक अखंड भारत की बात करता।
एक ऐसा भारत जहाँ हर किसी को अपने धर्म के हिसाब से जीने और उसके प्रचार व प्रसार की आज़ादी होती । नफरत और आतंकवाद के लिये कोई जगह न होती,मगर इस समूह की सोच से बरखिलाफ सोच रखने वाला भी एक समूह इस देश मे तब भी था,और आज भी है। एक ऐसा समूह जिसने देश मे आतंकवाद को न सिर्फ बढावा दिया, बल्कि बाक़ायदा उसको पोषित किया । आज़ाद भारत की पहली आतंकवादी घटना को अंजाम दिया ! देश मे लोगो को मिलजुल कर रहने वाले लोगों के राष्ट्रनायक और देश के राष्ट्रपिता को एक आतंकवादी जिसे दुनिया नाथूराम गोडसे के नाम से जानती है, ने अपनी कुंठित मानसिकता को बढावा देते हुये मार दिया। असल मे आज़ाद भारत का ये पहला आतंकवादी हमला था। नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की साज़िश नारयण आप्टे, विनायक दामोदर सावरकर और दूसरे आरएसएस और हिंदू महासभा नामक सगठन के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बनायी थी। विनायक दामोदर सावरकर वही व्यक्ति है,जिसे संघ,भाजपा और इन से जुडे दक्षिणपंथी संगठन के कार्यकर्ता वीर सावरकार के नाम से जानते हैं।
गांधी जी की हत्या आज़ाद भारत की पहली आतंकवादी घटना थी। जिसकी नीव आज़ादी के पहले ही रख दी गयी थी। और वजह बनी थी बेवजह का अतिवाद और उससे उतपन्न घृणा ,नफ़रत । ये सभी संगठन गांधी जी के एकता के सिद्धांत के खिलाफ थे, इन अतिवादियों की गांधी जी से घृणा करने की मुख्य वजह थी मुस्लिम समाज के खिलाफत आंदोलन मे गांधी जी का शामिल होना था । गांधी जी चाहते थे कि देश के बटवारे के बाद दोनो देशों के हिस्से मे आयी चीज़ों को बांटकर जल्द ही समस्या खत्म की जाये, जैसे गांधी जी पाकिस्तान के हिस्से के 55 करोड रुपये तुरंत चुकाने के पक्षधर थे। और बटवारे के समय हो रहे दंगे, सीमा दोनो तरफ से आने और जाने वाले लोगो की हत्याओं से गांधी जी व्यथित थे। वोह नही चाहते थे कि ये खून की नदियां बहें । और उनकी इस चिंता को कुछ अतिवादियों ने पाकिस्तान की तरफदारी दिखाना चाहा, जिसपर वोह नाकाम हुये । मगर देश शांति भाईचारे को पसंद करता है! देश के लोग बापू को पसंद करते हैं और उस समय भी करते थे। मगर देश का एक वर्ग जो अतिवाद+झूठ = बेवजह नफरत का गठजोड था और आज भी है, गांधी जी के इस एकता और अखन्डता के रास्ते को पसंद नही करता था।
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गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ समय बाद सरदार पटेल ने (सिर्फ एक सांस्कृतिक संगठन के रूप मे संघ के कार्य करने की बात पर) संघ से प्रतिबंध हटा दिया । मगर आज़ाद भारत की पहली आतंकवादी घटना को अंजाम देने वाला संगठन सक्रीय रहा और आज भी है। देश मे एक ऐसी आतंकवादी सोच
ने जन्म लिया जिसका असर हमे असीमानंद और उसके साथियो मे दिखता है। और यही सोच देश मे आजतक दंगों को अंजाम दे रही है। और याद रखिये सबसे ज़्यादा आतंकवाद दंगे और उस समय फैलायी गयी नफरत से फैलता है।

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