“संघ का षडयंत्र (आज़ादी के पहले)

{यह लेख संघ का षडयंत्र का पहला भाग है, अगला भाग (1947-1999) होगा। कृपया इसे पूरा पढें और सार्थक कमेंट करें। गालियों का उपयोग न करें उससे आपकी परवरिश की पहचान हो जाती है! }
1905 में 16 अक्टूबर को भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया था। बंगाल विभाजन तो अंग्रेज़ों ने किया तो अपने फायदे के लिये था, और उन्हे तात्कालीन लाभ भी मिला! परंतु इसका सर्वाधिक फायदा दक्षिणपंथी अलगाववादी सोच के प्राणियों ने उठाया । इसके कुछ सालों के पश्चात,जब लोगों की सोच का विभाजन हो चुका था, जब एक समूह एकता से परिपूर्ण भारतीय समाज से इतर अपनी अलगाववाद की सोच के प्रचार मे लगा था,उसे अपनी नीतियों को फैलाने के लिये बल मिला ।
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उन्होने इसका प्रचार प्रसार आरम्भ किया । जिसका नतीजा ये हुआ कि बंगाल के साथ ये दिलों का विभाजान उत्तर भारत की तरफ मुडा, भारतीय समुदाय एक षडयंत्र का शिकार हो रहा था। एक ऐसा समूह जिसे देश की आज़ादी से कोई सरोकार नही था, वोह अपनी इस विनाशकय विचारधारा को फैलाने के लिये जी जान से जुट गया था। मगर इनसे हट के ज़्यादतर भारतीय अमन और भाईचारे के साथ रहना चाहते थे, कुछ लोग देश की पहचान को मिटते देखना नही चाहते थे और 1911 मे बंगाल का विलय हो गया । ये घटना नफरत के सौदागरों के लिये असहनीय थी। उन्हे अपने इरादों पर पानी फिरता दिख रहा था ।
दक्षिणपंथियों की कोशिशों से विलय के चार वर्ष बाद ही सन 1915 मे हिंदू महासभा नामक संगठन वजूद मे आया, विनायक दामोदर सावरकर ने इस संगठन को केशव हेडगेवार के साथ मिलकर खडा किया था । इस संगठन का मुख्य उद्देश्य एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना था जहाँ मुस्लिम न हों, महासभा के अनुसार हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। इसी सोच से महासभा ने अलगाव का बीज बोया। 1925 मे हेडगेवार ने एक और संगठन की नींव रखी, और उसे नाम दिया “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ”। महासभा की अलगाव की सोच को तब और बल मिला जब मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र की मांग की । 
अब महासभा,संघ और मुस्लिम लीग दो ध्रुव थे, मगर उद्देश्य दोनो का एक ही था। और वोह था “अपने-अपने लिये अलगा राष्ट्र “
इधर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता आज़ादी की लडाई मे साथ-साथ थे। चूंकि महात्मा गांधी आज़ादी की लडाई अपने आंदोलनों से अलख जगाये हुये थे, और धर्मनिर्पेक्षता के पक्षधर होने की वजह से हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। यही बात संघ और महासभा के लोगों को खटकती थी। खिलाफत आंदोलन मे गांधी जी का हिस्सा लेना महासभा और संघ के लिये एक ऐसा मुद्दा बना,कि इसके बहाने अलगाव को हवा देने की कोशिश की गयी ।
जब भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान वजूद मे आया तो गांधी जी चाहते थे कि पाकिस्तान के हिस्से मे आये 55 करोड रुपये उसे दे दिये जायें। संघ और महसभा के कर्ताधर्ता इसे मुद्दा बना बैठे। कई दिनों से कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाये हुयी थी। मगर बटवारे ने सब बर्बाद कर दिया था। लोग एक दूसरे धर्म की बिना पर नफरत कर रहे थे। मगर इस देश मे गांधी जी और मौलाना आज़ाद जैसी शख्सियत भी थीं, जो अमन और भाईचारे के समर्थक थे । मौलाना आज़ाद पाकिस्तान बनने के खिलाफ थे, वहीं गांधी जी भी देश के दो तुकडे नही देखना चाहते थे। मगर जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग रियासतें वजूद मे आ गयी थी, तब गांधी जी चाहते थे कि दोनो देश एक दूसरे के दुशमन ना बनें, ताकि कोई तीसरी ताक़त इनपे राज न करे। मगर हुआ इसका उल्टा 31 जनवरी सन 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी गयी। एक ऐसी हत्या जिसकी साज़िश कई दिनों से चल रही थी। असल मे गांधी जी उस षडयंत्र के शिकार हुये थे, जिसकी शुरुआत सावरकर और हेड्ग़ेवार ने सन 1915 मे की थी।
गोडसे ने गांधी जी की हत्या के लिये पुणे से दिल्ली जाने के पहले सावरकर से आशिर्वाद लिया था। गांधी जी देश को एकता के सूत्र मे बांधना चाहते थे मगर संघ और उसके साथी संगठनों को ये एकता पसंद ना थी।
आज़ादी के बाद भारत सरकार के मंत्रीमण्डल मे संघ के कुछ व्यक्ति जैसे श्यामाप्रसाद मुखर्जी वगैरह को शामिल किया गया था। मगर 1915 से जो षडयंत्र रचा जा रहा जा रहा था, श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने उस षडयंत्र के पौधे को सिंचित करने का कार्य किया। ……………………………………………
(Be Conti……. जारी है…….)

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