अब पछताय का हो, जब चिड़िया चुग गई खेत

यूरोपीय परिपेक्ष्य की एक कहानी सुनाता हूँ!
एक यूरोपीय देश था,उस देश की प्रजा बड़ी ही सुशील और सभ्य व्यवहार के लिए पूरे संसार में जानी जाती थी| देश अपने गरीबी के दिनों को भूल चुका था, उस देश का राजा बड़ा ही सभ्य था| उसकी प्रजा भी बड़ी सभ्य थी, राजा चुपचाप देश के विकास कार्यों को अंजाम दे रहा था, उसने अपने राज में देश की अर्थव्यवस्था को नए आयाम पर पहुँचाया था| सारा संसार उस राजा की सोच को सलाम करता था, पर उस राजा के सरल स्वाभाव को तो देखिये| उसे ज़रा भी अपने सम्मान का घमंड नहीं था| वोह दुनिया भर में सम्मानित किया जाता रहा, उसे संसार के विभिन्न राजाओं ने अपने राष्ट्रीय सम्मानों से नवाज़ा, पर उसने और उसके समर्थकों ने कभी भी ढिंढोरा नहीं पीटा|
इसी बीच राजा के एक सूबे के प्रमुख ने उस राजा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया| राजा सभ्य एवं शिक्षित था, उसने उन आरोपों के जवाब न देकर अपने शांत स्वभाव से ही काम लिया| उस सूबाई प्रमुख ने राजा के ऊपर उस देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का आरोप लगाया| पर ऐसा था नहीं, उस देश की अर्थव्यवस्था तो आसमान को छू रही थी| उस देश की प्रजा उस बडबोले सूबाई प्रमुख के आरोपों को सच समझ बैठी| उस सूबाई प्रमुख ने देश की जनता से तख्तापलट का आह्वान किया, फिर क्या था एक बड़ी तादाद उसके साथ चल पड़ी|

उसने जनता को बड़े ही हसीन सपने दिखाया था, उसने जनता को ये कहा कि "अभी का समय बड़ा ही कष्टदायक है, देश लुट चुका है| पिछले कई सालों से काबिज़ इस राजा ने और इसके परिवार ने देश को कुछ नहीं दिया| आप सब मेरा साथ दो "बुरे दिन चले जायेंगे"|
वो जनता के बीच
जाता और उनसे कहता
"बुरे दिन ....................
फिर जनता कहती .....>>>>> .........जाने वाले हैं"
जब तख्तापलट हो गया तो उस नए राजा ने अपने समर्थकों के साथ खूब जश्न मनाया, उस जश्न में न जाने कितनी ही सरकारी मुद्रा का उपयोग किया गया| नए राजा के शौक़ बड़े महंगे थे| वो एक बार पहने कपड़ों को दुबारा नहीं पहनता था| पत्नी साथ न थी, इसलिए उसके साथ घर परिवार की कोई चिंता वाली बात नहीं थी| इसलिए राजा बनते ही पडोसी देशों में घूमना शुरू कर दिया,न वो सिर्फ़ घूमता बल्कि अपनी विदेश यात्राओं में आशातीत खर्च करता था| उसके सरकारी अस्तबल में हमेशा विदेश यात्रा के लिए कुछ घोड़े तैयार रखे जाते थे| एक बार वो किसी देश की यात्रा से लौट रहा था| तभी अचानक उसे न जाने क्या सूझी, वो एक दुश्मन राज्य की तरफ रुख कर बैठा| इससे पूर्व उस राजा ने उस दुश्मन देश के राजा को अपने राज्याभिषेक में बुलाया था| उस दुश्मन देश के राजा के घर रात्रिभोज के पश्चात वह राजा देश की ओर प्रस्थान कर बैठा | देश की आर्थिक स्थिति दिन ब दिन खराब होते जा रही थी, लोगों ने राजा को सरकारी खजाने में हो रही गिरावट के बारे में बताया| राजा ने जनता पर कर लगाकर उसकी पूर्ती के बारे में सोचा, इसी बीच राजा एक और विदेश यात्रा में निकल पड़ा| फिर क्या था, राजा ने दूसरे देशों को धन बांटना भी शुरू कर दिया| अपनी जनता से कर के रूप में वसूला गया पैसे से विश्वविजेता बनने के सपने यह राजा देखने लगा था| इसी बीच उसके विरुद्ध राज्य में आवाजें उठने लगीं, फिर क्या था, उन आवाजों को दबाने के लिए राजा ने जनता के बीच में से अपने समर्थकों को आगे लाकर खड़ा कर दिया| अब जो भी राजा का विरोध करता, उसके समर्थक उसे राष्ट्रद्रोही घोषित कर देते थे| वो उसके हर कार्य का आँख बंद करके समर्थन करते थे| पर वो तो यूरोपीय लोग थे, जो बड़े ही समझदार थे, इसलिए उन्हें अपनी की गई गलती का एहसास हुआ| पर अब बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि राजा के समर्थक बेलगाम होचुके थे| पूरे देश में अराजकता का माहौल पैदा कर दिया गया था| जनता के बीच असुरक्षा की भावना पैदा हो चुकी थी| एक समय सपन्नता के निकट पहुँच चुके देश में बेरोज़गारी और जुर्म चरम सीमा पर थे| बुज़ुर्ग और बूढ़े लोग उन बच्चों को समझा रहे जिन्होंने तख्तापलट में अहम भूमिका निभाई थी| सभी बुज़ुर्ग एक साथ बोल पड़े -
" अब पछताय का हो, जब चिड़िया चुग गई खेत"

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