आतंकवाद एक समस्या :- भाग-1 (Problem Of Terrorism)


"आतंकवाद" ! एक ऐसी बीमारी जिससे पूरी दुनिया ग्रसित है, शायद ही दुनिया का कोई ऐसा खित्ता हो जो इस बीमारी की ज़द में न हो। कहीं इस्लाम के नाम पर तो कहीं दंगों के रूप में, कहीं हथियारों की तस्करी तो कहीं समुद्री लुटेरे आदि आतंक के पर्याय हैं। कहीं नक्सलवादी तो कहीं उग्रवादी वगैरह आतंकवाद की वजह बने हुए हैं। सम्पूर्ण विश्व में आतंक की कहानी बेअक्ली से शुरू होती है, आतंकवाद किसी भी रूप में हो, उसकी मूल वजह किसी भी बात का अपनी मनमर्जी से अर्थ निकालकर उसे अपने अनुसार बनाने की कोशिश में हिंसात्मक रवैया आतंकवाद को जन्म देता है। ये तो एक मानसिक कारण हुआ, पर वैश्विक स्तर पर इस समस्या का दूसरा बड़ा कारण आतंकवाद की अनदेखी भी रही है! 
जिहाद के नाम पर आतंकवाद
सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम के नाम पर या जिहाद के नाम पर पनपे आतंकवाद और आतंकवादी संगठन एक बड़ी समस्या बने हुए हैं। जबकि इस्लाम का सही तरह से अध्यन करने से आपको मालूम होगा कि इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा बिलकुल नहीं देता, बल्कि जिस "जिहाद" शब्द का उपयोग आतंकवादी अपने आतंकी  कार्य को परिभाषित करने के लिए करते हैं, उस जिहाद शब्द का वास्तविक अर्थ "संघर्ष" है। यह संघर्ष किसी भी प्रकार का हो सकता है। इस्लाम में सबसे श्रेष्ठ जिहाद नफ्स पर कंट्रोल (इच्छाओं पर नियंत्रण) को माना गया है।अपने हक के लिए किसी भी प्रकार के संघर्ष को भी "जिहाद" कहा गया है। पर आतंक और आतंकवाद जिहाद नहीं हो सकते, क्योंकि जब हम पवित्र धर्मग्रन्थ कुरान का अध्यन करते हैं तो हम पाते हैं, 
            कुरान के अनुसार :- " जिसने एक बेगुनाह इंसान को मारा, उसने पूरी इंसानियत को मार डाला और जिसने एक बेगुनाह इंसान की जान बचाई अर्थात उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई"
 (कुरान :- सुरह माइदा)

यह तो हुई कुरान की शिक्षा आईये अब पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. के जीवन पर भी एक नज़र दौड़ा ली जाए। पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. के जीवन पर जब नज़र डाली जाती है, तो हम पाते हैं कि पैगम्बर साहब का जीवन संघर्ष की एक मिसाल है। एक ऐसी मिसाल जिसमें कहीं भी आतंक के लिए कोई स्थान नहीं। अब जो लोग इस्लाम के नाम पर या कुरान की आयतों का अपनी मनमर्जी से अर्थ निकालकर आतंकवाद को इस्लामी कृत्य बताकर आतंक को सहीह ठहराने की कोशिश करते हैं या आतंक को जिहाद का नाम देकर मुस्लिम युवाओं को आतंक की भट्टी में झोंकने की कोशिश करते हैं, उन्हें चाहिए की पहले पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. की जीवनी का अध्यन करें! इसके पश्चात कुरान का अध्यन करें, ताकि मुस्लिम युवाओं को भ्रमित होने से बचाया जा सके!

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